Sunday, July 27, 2008

ककहरा


‘ क ‘ से काम कर ,

‘ ख ‘ से खा मत ,

‘ ग ‘ से गीत सुना ,

‘ घ ‘ से घर की बात न करना , ङ खाली.

सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली !

‘ च ‘ को सौंप चटाई ,

‘ छ ‘ ने छल छाया ,

‘ ज ‘ जंगल ने , ‘ झ ‘ का झण्डा फहराया ,

झगड़े ने ञ बीचोबीच दबा डाली ,

सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली !

‘ ट ‘ टूटे , ‘ ठ ‘ ठिटके ,

यूँ ‘ ड ‘ डरा गया ,

‘ ढ ‘ की ढपली हम ,

जो आया , बजा गया.

आगे कभी न आई ‘ ण ‘ पीछे वाली,

सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली !

---------------रचनाकार: रामकुमार कृषक

Saturday, July 19, 2008

करोड़पति बनने का इरादा है

Tuesday, July 15, 2008

भूतनाथ का बच्चा


एक बच्चा हमेशा रोता रहता था. कभी खूब चिल्ला के कभी सिर्फ आँसू बहा के. वह कभी रोने का कारण ही नहीं बताता था. लोग बहुत हँसाने, मनाने, समझाने की कोशिश करते थे, लेकिन उसपर कोई असर ही नहीं पड़ता था. पापा ने खिलौने लाके दिए, मम्मी ने गाने सुनाए, बड़े भाई ने कार्टून दिखाया, फिर भी उसपर कोई असर नहीं पड़ा. डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने दवा लिख दी, दवा खिलाए गए. उसपर फिर भी कोई असर नहीं पड़ा. धीरे धीरे सब चिढ़ने लगे. अब वह ज्यादातर डाँट खाने लगा.
एक दिन जब वह सो रहा था, उसके सपने में भूतनाथ आए. पूछा-
"दोस्त, इतना रोता क्यों है?"
उसने कहा-
"भूत, मैंने तुम्हें टी.वी. में देखा था, तुम इतने अच्छे लगे, मैं तुम्हें अपने साथ रखना चाहता हूँ. तुम्हें ढूँढता रहता हूँ, तुम मिलते नहीं तो मैं क्या करूँ?"
भूतनाथ ने प्यार से समझाया-
"दोस्त, इस दुनिया में माता, पिता, भाई-बहन से अच्छा और प्यारा कुछ नहीं होता. मैं उन्हीं के दिलों में रहता हूँ. तुम सबसे मिलो, बातें करो, कहा मानों. वो जब भी जो भी करें, समझो मैं कर रहा हूँ."
इसी तरह की सारी बातें कर भूतनाथ चला गया. बच्चे ने कहा मान लिया. अब वह खुश रहने लगा.

Saturday, July 12, 2008

चित्र बनायें यहाँ भी

डक हंट (Duck+Hunt)

टेरिस (Teris)

मारियो की वापसी

खूनी कार

मेरे पास एक कार थी. उसकी खूबी यह थी कि वह पेट्रोल की बजाय आदमी के ताजे खून से चलती थी. वह हवाई जहाज की गति से चलती थी और मैं जहाँ चाहूँ, वहाँ पहुँचाती थी, इसलिए में उसे पसंद भी खूब करता था, उसे छोड़ने का इरादा नहीं रखता था.

सवाल यह था कि उसके लिए रोज-रोज आदमी का खून कहाँ से लाऊँ? एक ही तरीका था कि रोज दुर्घटना में लोगों मारूँ और उनके खून से कार की टंकी भरूँ.

मैंने सरकार को अपनी कार की विशेषताएं बताते हुए एक प्रार्थनापत्र दिया और और निवेदन किया कि मुझे प्रतिदिन सड़क दुर्घटना में एक आदमी को मारने की इजाजत दी जाए.

सरकार की ओर से पत्र प्राप्त हुआ कि उसे मेरी प्रार्थना इस शर्त के साथ स्वीकार है कि कार को विदेशी सहयोग से देश में बनाने पर मुझे आपत्ति नहीं होगी.


------------------------------------------------------- रचनाकार : विष्णु नागर

एक कौए की मौत


एक कौआ प्यास से बेहाल था.
वह उड़ते-उड़ते थक गया,
मगर कहीँ पानी न मिला.
आखिर में उसे एक घड़ा दिखा.
उसमें चुल्लू भर पानी था.
कौआ खुश हो गया.
उसने सोचा कि कंकड़ डालने वाली पुरानी पद्धति अपनाऊँगा,
तो पानी ऊपर आ जाएगा,
और मै पी लूँगा.
कौए के दुर्भाग्य से वह महानगर था, वहाँ कंकड़ नहीं थे.
कौआ मर गया और पानी भाप बनकर उड़ गया.



------------------------------------------------------- रचनाकार : विष्णु नागर

इनाम

हिरन का मांस खाते-खाते भेड़ियों के गले में हाड़ का एक काँटा अटक गया.
बेचारे का गला सूज आया. न वह कुछ खा सकता था, न कुछ पी सकता था. तकलीफ के मारे छटपटा रहा था. भागा फिरता था-इधर से उधर, उधर से इधऱ। न चैन था, न आराम था. इतने में उसे एक सारस दिखाई पड़ा-नदी के किनारे। वह घोंघा फोड़कर निगल रहा था.

भेड़िया सारस के नजदीक आया. आँखों में आँसू भरकर और गिड़गिड़ाकर उसने कहा-‘‘भइया, बड़ी मुसीबत में फँस गया हूँ. गले में काँटा अटक गया है, लो तुम उसे निकाल दो और मेरी जान बचाओ. पीछे तुम जो भी माँगोगे, मैं जरूर दूँगा. रहम करो भाई !’’

सारस का गला लम्बा था, चोंच नुकीली और तेज थी. भेड़िये की वैसी हालत देखकर उसके दिल को बड़ी चोट लगी भेड़िये ने मुँह में अपना लम्बा गला डालकर सारस ने चट् से काँटा निकाल लिया और बोला-‘‘भाई साहब, अब आप मुझे इनाम दीजिए !’’

सारस की यह बात सुनते ही भेड़िये की आँखें लाल हो आई, नाराजी के मारे वह उठकर खड़ा हो गया. सारस की ओर मुँह बढ़ाकर भेडिया दाँत पीसने लगा और बोला-‘‘इनाम चाहिए ! जा भाग, जान बची तो लाखों पाये ! भेड़िये के मुँह में अपना सिर डालकर फिर तू उसे सही-सलामत निकाल ले सका, यह कोई मामूली इनाम नहीं है. बेटा ! टें टें मत कर ! भाग जा नहीं तो कचूमर निकाल दूँगा.’’

सारस डर के मारे थर-थर काँपने लगा. भेड़िये को अब वह क्या जवाब दे, कुछ सूझ ही नहीं रहा था. गरीब मन-ही-मन गुनगुना उठा-

रोते हों, फिर भी बदमाशों पर करना न यकीन.
मीठी बातों से मत होना छलियों के अधीन.
करना नहीं यकीन, खलों पर करना नहीं यकीन.

-------------------------------------------रचनाकार : नागार्जुनथ्

खुली पाठशाला फूलों की

खुली पाठशाला फूलों की
पुस्तक-कॉपी लिए हाथ में
फूल धूप की बस में आए

कुर्ते में जँचते गुलाब तो
टाई लटकाए पलाश हैं,
चंपा चुस्त पज़ामें में है -
हैट लगाए अमलताश है ।

सूरजमुखी मुखर है ज़्यादा
किंतु मोंगरा अभी मौन है,
चपल चमेली है स्लेक्स में
पहचानों तो कौन-कौन है ।

गेंदा नज़र नहीं आता है
जुही कहीं छिपाकर बैठी है,
जाने किसने छेड़ दिया है -
ग़ुलमोहर ऐंठी-ऐंठी है ।

सबके अपने अलग रंग हैं
सब हैं अपनी गंध लुटाए,
फूल धूप की बस में आए -
मुस्कानों के बैग सजाए ।
---------------रचनाकार: डा तारादत्त निर्विरोध

जब सूरज जग जाता है

आँखें मलकर धीरे-धीरे
सूरज जब जग जाता है ।
सिर पर रखकर पाँव अँधेरा
चुपके से भग जाता है ।
हौले से मुस्कान बिखेरी
पात सुनहरे हो जाते ।
डाली-डाली फुदक-फुदक कर
सारे पंछी हैं गाते ।
थाल भरे मोती ले करके
धरती स्वागत करती है ।
नटखट किरणें वन-उपवन में
खूब चौंकड़ी भरती हैं ।
कल-कल बहती हुई नदी में
सूरज खूब नहाता है
कभी तैरता है लहरों पर
----------------रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

तिल्ली सिंह


पहने धोती कुरता झिल्ली
गमछे से लटकाये किल्ली
कस कर अपनी घोड़ी लिल्ली
तिल्ली सिंह जा पहुँचे दिल्ली
पहले मिले शेख जी चिल्ली
उनकी बहुत उड़ाई खिल्ली
चिल्ली ने पाली थी बिल्ली
बिल्ली थी दुमकटी चिबिल्ली
उसने धर दबोच दी बिल्ली
मरी देख कर अपनी बिल्ली
गुस्से से झुँझलाया चिल्ली
लेकर लाठी एक गठिल्ली
उसे मारने दौड़ा चिल्ली
लाठी देख डर गया तिल्ली
तुरत हो गयी धोती ढिल्ली
कस कर झटपट घोड़ी लिल्ली
तिल्ली सिंह ने छोड़ी दिल्ली
हल्ला हुआ गली दर गल्ली
तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली!

_________________________________रामनरेश त्रिपाठी

अक्कड मक्कड

अक्कड मक्कड ,
धूल में धक्कड,
दोनों मूरख,
दोनों अक्खड,
हाट से लौटे,
ठाट से लौटे,
एक साथ एक बाट से लौटे .
बात बात में बात ठन गयी,
बांह उठीं और मूछें तन गयीं.
इसने उसकी गर्दन भींची,
उसने इसकी दाढी खींची.
अब वह जीता,अब यह जीता;
दोनों का बढ चला फ़जीता;
लोग तमाशाई जो ठहरे -
सबके खिले हुए थे चेहरे !
मगर एक कोई था फक्कड,
मन का राजा कर्रा - कक्कड;
बढा भीड को चीर-चार कर
बोला ‘ठहरो’ गला फाड कर.
अक्कड मक्कड ,
धूल में धक्कड,
दोनों मूरख,
दोनों अक्खड,
गर्जन गूंजी,रुकना पडा,
सही बात पर झुकना पडा !
उसने कहा सधी वाणी में,
डूबो चुल्लू भर पानी में;
ताकत लडने में मत खोऒ
चलो भाई चारे को बोऒ!
खाली सब मैदान पडा है,
आफ़त का शैतान खडा है,
ताकत ऐसे ही मत खोऒ,
चलो भाई चारे को बोऒ.

______________________ भवानीप्रसाद मिश्र

यह कदंब का पेड़

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे.
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली.
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता.
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता.
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता.
तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे.
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता.
तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं.
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे.

______________________रचनाकार: सुभद्राकुमारी चौहान

अगर पेड़ भी चलते होते









अगर पेड़ भी चलते होते
कितने मज़े हमारे होते,
बाँध तने में उसके रस्सी
चाहे जहाँ कहीं ले जाते.

जहाँ कहीं भी धूप सताती
उसके नीचे झट सुस्ताते,
जहाँ कहीं वर्षा हो जाती
उसके नीचे हम छिप जाते.

लगती भूख यदि अचानक
तोड़ मधुर फल उसके खाते,
आती कीचड़ बाढ़ कहीं तो
झट उसके ऊपर चढ़ जाते.

अगर पेड़ भी चलते होते
कितने मज़े हमारे होते.

____________रचनाकार: दिविक रमेश

पेड़

अगर तुम होते
सतपुड़ा के घने जंगलों में,
डूबे होते नींद में
मस्ती में अनमने से ऊँघते,
जाग कर लहराते यूँ
अपनी ही नाद में झूमते.
मिलाते अपनी बाँहें अपनों से
जुड़ जाते एक-दूजे के सपनों से,
पशु-पक्षी तीतर-बटेर
तुम पर अपने मन को फेर
इस तरह रम जाते मानो
अपने-से हो जाते.

क्यों हो इस शहर में तुम
जहाँ
धूल, गंदगी और धूप में तपकर
दिन रात उदास रहते हो,
अपनों का कुछ पता नहीं है
भीड़ से निराश रहते हो.
मनुष्यों को जगाओ ऐसे
दिखे हर कोई तुमसे जुड़ा
लगे मन से कांक्रीट नहीं
हो जायें यूँ ज्यों सतपुड़ा.

__________________ भास्कर रौशन

Wednesday, July 2, 2008

सवालों के जवाब सुहाने

सवाल:

"पुस्तकें: सच्ची मित्र" विषय पर अपने विचार बताइए.
जवाब:
मित्र संकटों में सहयोगी और जीवन में उपयोगी माने जाते हैं. जीवन पर यह प्रभाव पुस्तकों के रूप में भी पड़ता है. यही कारण है कि समाज और व्यक्ति के विकास में पुस्तकों का बड़ा योगदान है.
यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पुस्तकें केवल ज्ञान में ही वृद्धि नहीं करती, बल्कि मनोरंजन भी करती है. व्यक्ति मित्रों के समान अपनी इच्छाओं के आधार पर पुस्तकों का चयन करते हैं और पढ़ते हैं.
व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, एवं राष्ट्रीय सभी क्षेत्रों की परेशानियों के समाधान में पुस्तकें ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. ऐसे में यह स्वीकार करना ही ठीक है कि पुस्तक से बेहतर और कोई मित्र नहीं.
सवाल:
बढ़ती मंहगाई पर दो औरतों में संवाद लिखिए.

जवाब:
रमा बाजार जा रही थी कि पड़ोसिन श्यामा ने उसे रोक कर साथ चलने को कहा. ताकि रास्ता भी आसानी से कट जाए और दोनों मिलकर सामान का मोल भाव भी ठीक से करवा लें. क्योंकि अगर एक एक पैसा देखकर खर्च नहीं किया गया तो इस बढ़ती मंहगाई से घर चलाना मुश्किल हो जाएगा. रास्ते में दोनों एक दूसरे से बढ़ती मंहगाई का हाल कहने लगीं -
रमा : देख न श्यामा कल टमाटर 5 रूपये किलो थे और आज 5 रूपये पाव. मैं तो अब किलो भर टमाटर पूरे हफ्ते चलाती हूँ.
श्यामा : सच रमा, टमाटर प्याज आलू के बिना तो खाना बनाना ही मुश्किल है.
रमा : कल तक सिलेण्डर 250 रूपये का था अब 310 रूपये का है. गैस के बिना तो इन शहरों में खाना भी नहीं बना सकते.
श्यामा : उपर से ये पेट्रोल के दाम. लगातार बढ़ती कीमत से राहुल के पापा कितने परेशान हैं. पेट्रोल की कीमतों का असर हमारे द्वारा खरीदी जाने वाली हर चीज पर पड़ता है.
रमा : हाँ, हाँ, पड़ता ही है. क्योंकि हर चीज को एक जगह से दूसरी जगह लाने ले जाने का काम जिन मोटर गाड़ियों से होता है, वे तो पेट्रोल से ही चलते हैं न.
श्यामा : तेल चाहे गाड़ी का हो या रसोई का मंहगाई ने किसी को नहीं छोड़ा. एक आम आदमी के लिए अपने छोटे परिवार को सुखी परिवार बनाने के लिए अब दिन-रात से भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.
रमा : हे भगवान! कब थमेगी ये मंहगाई की दर.
सवाल:
बचपन की शरारतों पर अनुच्छेद लिखिए.
जवाब:
वैसे तो बचपन के शरारतों की कोई सीमा नहीं होती. आज जिसकी सबसे ज्यादा याद आ रही है वो है गर्मियों की छुट्टी का एक दिन. गर्मियों की छुट्टी में जब पापा आफिस चले जाते माँ दिनभर का काम कर दोपहर को सो जाती थी तो मैं चुपके से घर से बाहर जाकर धूप में भी अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलता था और माँ के जगने से पहले लौट आता था. ऐसा कई दिनों तक चला. एक दिन मेरे लौटने से पहले माँ जाग गई और उनको पता चल गया कि मैं बाहर क्रिकेट खेल रहा हूँ. घर में चुपचाप घुसते हुए मैंने ज्यों ही पैर रखा माँ ने मुझे पकड़ लिया, माँ ने डाँटते हुए मुझे अहसास कराया कि पढ़ना कितना जरूरी है और दोपहर में धूप से बचना भी. वो शरारत आज भी याद आती है.
सवाल:
टी वी के पसंदीदा दो कार्यक्रमों पर कुछ पंक्तियाँ लिखिए.

जवाब:
आजकल टेलीविजन पर सैकड़ों चैनल आते हैं और हजारों कार्यक्रम. मैं तो कुछ ही देख पाता हूँ, उनमें भी कार्टून नेटवर्क और डिस्कवरी चैनल ज्यादा देखता हूँ. इन दोनों में केवल मनोरंजन ही नहीं होता सीख भी होती है. जैसे कार्टून में मैडेलाइन, यह एक छोटी लड़की है जो बोर्डिंग में पढ़ती है. इसमें तुकबंदी से बहुत-सी जरूरी शिक्षा और व्यवहार की बातें दिखाई जाती हैं. डिस्कवरी में समय की जिन वास्तविकताओं को हम नहीं जानते उससे जुड़ाव बनता है. प्रकृति और मनुष्य के बीच सही पहचान को ढूँढते और बताते ये कार्यक्रम अच्छे लगते हैं.
सवाल:
अपने मित्र को दिल्ली के दर्शनीय स्थानों के विषय में एक पत्र लिखिए.
जवाब:
दिनांक 02.07.2008

प्रिय राहुल,
कैसे हो? तुमने कहा था कि इन गर्मियों में तुम दिल्ली आओगे, पर आए नहीं, आपसी सैर रह गया. तुम जानते हो हमारी दिल्ली बहुत सुंदर है. देश की राजधानी दिल्ली में कई दर्शनीय स्थल हैं. यहाँ राष्ट्रपति भवन है, उसके सामने इंडिया गेट पर शाम के समय लोगों का खूब जमावड़ा होता है.
दिल्ली का लालकिला, जामा मस्जिद, और कुतुबमिनार यहाँ कि ऐतिहासिक भव्यताओं को दर्शाता है. यहाँ कमल मंदिर, बिरला मंदिर, अक्षरधाम जैसे प्रसिद्ध मंदिर है, जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु जाते हैं. यहाँ का चिड़ियाघर भी देखने योग्य है. इसके साथ ही दिल्ली का एक नया रूप भी है, वह है मैट्रो. बड़े-बड़े मॉल और खूबसूरत बाजार दिल्ली को चार चाँद लगाते हैं.
विज्ञान आदि विषयों से जुड़े कई केन्द्र यहाँ है, जैसे नेहरू तारामंडल. और भी बहुत से आकर्षण के केन्द्र हैं. तुम जल्दी आना. तुम्हारे साथ मैं भी ठीक से सैर कर पाऊँगा. शेष सब सकुशल.

तुम्हारा मित्र
अमित
सवाल:
बच्चों की पढ़ाई के चिंता में पति-पत्नी के संवाद लिखिए.
जवाब:
10वीं में अच्छे अंकों से सुमित पास हुआ है लेकिन माँ-पापा अब भी परेशान है. अपने कमरे में लेटा सुमित सुनता है कि उसके माँ-पापा उसकी पढ़ाई को लेकर कितने चिंतित हैं -
पापा : अपना सुमित अच्छा नम्बर लाया है पर आगे वह क्या विषय ले कि उसका भविष्य बन जाए?
माँ : तुम तो विषय की कहते हो, मैं सोचती हूँ कि राहुल के स्कूल की फीस इतनी ज्यादा है, उस पर कोचिंग इंस्टीट्यूट, कैंप, किताबें सबका खर्चा है. ऐसे में सुमित की पढ़ाई का खर्चा भी तो होगा.
पापा : शर्मा जी के दोनों बेटे लायक हो गए हैं. एक डाक्टर है तो दूसरा IAS की तैयारी कर रहा है. हमारा सुमित भी पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बन जाए तो कितना अच्छा हो.
माँ : आज कल कम्पीटिशन कितना मुश्किल हो गया है. सुमित को अभी से मेहनत करनी होगी.
पापा : मैं उसकी पढ़ाई के लिए पूरा खर्च उठाऊँगा, अच्छे से अच्छा ट्यूटर लगाऊँगा, लेकिन मेहनत तो उसी को करनी होगी.
माँ : क्या वो कर पाएगा इतनी मेहनत?
सुमित सुनता है और मन ही मन अपने माँ-पापा को वचन देता है कि उनकी चिंता जरूर दूर करेगा.
सवाल:
भ्रष्टाचार के कारण बताइए और उपचार का सुझाव दीजिए.
जवाब:
हमारे देश को जोंक की तरह खा रही है भ्रष्टाचार की समस्या. यह एक ऐसी बिमारी है जो नौकरशाही के पायदान पर सबसे नीचे से शुरू होकर ऊपर तक के आदमी को जकड़े बैठी है. सामान्य रूप में इसके दो कारण दिखाई देते हैं.
1. आय की असमानता
2. नैतिकता का हनन
बढ़ती मँहगाई दर, ऊँचे रहन-सहन की इच्छा, सम्पत्ति आदि इच्छाएँ व्यक्ति को अपनी सीमित आय से असंतुष्ट कर देती हैं. यही कारण है कि वह भ्रष्टाचार की चपेट में आ जाता है. ऐसा व्यक्ति देश, समाज और परिवार के प्रति, एक दूसरे के प्रति अपने कर्तव्य को भूलाकर नैतिक-मूल्यों से गिर जाता है. घुसखोरी, शोषण, कालाबाजारी भ्रष्टाचार के समान्य रूप हैं. इस बुराई को रोकने के लिए जरूरी है कि
1. परिवार में ही व्यक्ति को अच्छे मूल्यों और सच्चरित्र होने की शिक्षा दी जाए.
2. समाज में व्यक्ति परस्पर कर्तव्य को समझे और बिना हानि-लाभ पर विचार किए उन्हें पूरा करे.
3. आर्थिक क्षेत्र में भी उपचार आवश्यक है. सम्भवत: आय और उपभोग के साधनों का समान वितरण इस समस्या को रोकने में कारगर साबित होगा.