सूरज की चमक जब बहा दे पसीना,
हम सब कह उठते हैं गर्मी है आई।
छुट्टी की सुहानी सौगातें सब पाते हैं
इम्तहान के समय की हो गई बिदाई।
खेलों की दुनिया में यूँ हम खो जाते हैं
आपस में कभी नहीं होती लड़ाई।
बाहरी गर्मी का असर तन को तो होता है
पर मन की शीतलता को छू भी ना पाई।
कोई धूप से बचने के लिए ढूंढे जब छाया तो
हम सब कह उठते हैं गर्मी है आई।
Tuesday, April 27, 2010
गर्मी है आई
Posted by अपराजिता 'अलबेली' at 8:32 AM 2 comments
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