Tuesday, April 27, 2010

गर्मी है आई

















सूरज की चमक जब बहा दे पसीना,

हम सब कह उठते हैं गर्मी है आई।

छुट्टी की सुहानी सौगातें सब पाते हैं

इम्तहान के समय की हो गई बिदाई।

खेलों की दुनिया में यूँ हम खो जाते हैं

आपस में कभी नहीं होती लड़ाई।

बाहरी गर्मी का असर तन को तो होता है

पर मन की शीतलता को छू भी ना पाई।

कोई धूप से बचने के लिए ढूंढे जब छाया तो

हम सब कह उठते हैं गर्मी है आई।