Saturday, July 3, 2010

अनेकता में एकता












अलग-अलग फूलों से सजकर
क्यारी गुलशन बन जाती है
अलग-अलग हैं नदियाँ सारी
सब सागर में मिल जाती है
अलग-अलग शब्दों से बंधकर
एक कहानी बन जाती है
अनेक रंगों की सुंदरता
ही तो, इंद्रधनुष कहलाती है
आसमान में सारे तारे
संग होकर प्यारे लगते हैं
मेरे भारत की धरती पर
कई भाषा और कई धर्म हैं
यही अनेकता मिल जाने पर
एकता हमारी बन जाती है।


जय हिन्द


रचनाकार : गंगा शर्मा से साभार