Sunday, March 6, 2022
Posted by अपराजिता 'अलबेली' at 2:01 AM 0 comments
Sunday, September 11, 2011
चकई के चकादुम
चकई के चकादुम, चकई के चकादुम,
गांव की मडैया, साथ रहें हम तुम!
चकई के चकादुम, चकई के चकादुम
ग्वाले की गैया, दूध पिएँ हम तुम!
चकई के चकादुम, चकई के चकादुम
कागज़ की नैया, पार करें हम तुम!
चकई के चकादुम, चकई के चकादुम
फुलवा की बगिया, फूल चुनें हम तुम!
चकई के चकादुम, चकई के चकादुम
खेल खतम भैया! आओ चलें हम तुम!
चकई के चकादुम, चकई के चकादुम
अम्मां की रसोई, खाना खाएँ हम तुम!
---------------------------------------------- हिंदी की पाठ्यपुस्तक से साभार
Posted by अपराजिता 'अलबेली' at 8:02 AM 0 comments
Saturday, July 3, 2010
अनेकता में एकता
अलग-अलग फूलों से सजकर
क्यारी गुलशन बन जाती है
अलग-अलग हैं नदियाँ सारी
सब सागर में मिल जाती है
अलग-अलग शब्दों से बंधकर
एक कहानी बन जाती है
अनेक रंगों की सुंदरता
ही तो, इंद्रधनुष कहलाती है
आसमान में सारे तारे
संग होकर प्यारे लगते हैं
मेरे भारत की धरती पर
कई भाषा और कई धर्म हैं
यही अनेकता मिल जाने पर
एकता हमारी बन जाती है।
जय हिन्द
रचनाकार : गंगा शर्मा से साभार
Posted by अपराजिता 'अलबेली' at 9:59 AM 4 comments
Friday, May 21, 2010
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