Thursday, June 26, 2008

कथा सुहानी





मेरे पास एक कार थी. उसकी खूबी यह थी कि वह पेट्रोल की बजाय आदमी के ताजे खून से चलती थी. वह हवाई जहाज की गति से चलती थी और मैं जहाँ चाहूँ, वहाँ पहुँचाती थी, इसलिए में उसे पसंद भी खूब करता था, उसे छोड़ने का इरादा नहीं रखता था.

सवाल यह था कि उसके लिए रोज-रोज आदमी का खून कहाँ से लाऊँ? एक ही तरीका था कि रोज दुर्घटना में लोगों मारूँ और उनके खून से कार की टंकी भरूँ.

मैंने सरकार को अपनी कार की विशेषताएं बताते हुए एक प्रार्थनापत्र दिया और और निवेदन किया कि मुझे प्रतिदिन सड़क दुर्घटना में एक आदमी को मारने की इजाजत दी जाए.

सरकार की ओर से पत्र प्राप्त हुआ कि उसे मेरी प्रार्थना इस शर्त के साथ स्वीकार है कि कार को विदेशी सहयोग से देश में बनाने पर मुझे आपत्ति नहीं होगी.


एक कौए की मौत



एक कौआ प्यास से बेहाल था.
वह उड़ते-उड़ते थक गया,
मगर कहीँ पानी न मिला.
आखिर में उसे एक घड़ा दिखा.
उसमें चुल्लू भर पानी था.
कौआ खुश हो गया.
उसने सोचा कि कंकड़ डालने वाली पुरानी पद्धति अपनाऊँगा,
तो पानी ऊपर आ जाएगा,
और मै पी लूँगा.
कौए के दुर्भाग्य से वह महानगर था, वहाँ कंकड़ नहीं थे.
कौआ मर गया और पानी भाप बनकर उड़ गया.



------------------------------------------------------- रचनाकार : विष्णु नागर




हिरन का मांस खाते-खाते भेड़ियों के गले में हाड़ का एक काँटा अटक गया.
बेचारे का गला सूज आया. न वह कुछ खा सकता था, न कुछ पी सकता था. तकलीफ के मारे छटपटा रहा था. भागा फिरता था-इधर से उधर, उधर से इधऱ। न चैन था, न आराम था. इतने में उसे एक सारस दिखाई पड़ा-नदी के किनारे। वह घोंघा फोड़कर निगल रहा था.

भेड़िया सारस के नजदीक आया. आँखों में आँसू भरकर और गिड़गिड़ाकर उसने कहा-‘‘भइया, बड़ी मुसीबत में फँस गया हूँ. गले में काँटा अटक गया है, लो तुम उसे निकाल दो और मेरी जान बचाओ. पीछे तुम जो भी माँगोगे, मैं जरूर दूँगा. रहम करो भाई !’’

सारस का गला लम्बा था, चोंच नुकीली और तेज थी. भेड़िये की वैसी हालत देखकर उसके दिल को बड़ी चोट लगी भेड़िये ने मुँह में अपना लम्बा गला डालकर सारस ने चट् से काँटा निकाल लिया और बोला-‘‘भाई साहब, अब आप मुझे इनाम दीजिए !’’

सारस की यह बात सुनते ही भेड़िये की आँखें लाल हो आई, नाराजी के मारे वह उठकर खड़ा हो गया. सारस की ओर मुँह बढ़ाकर भेडिया दाँत पीसने लगा और बोला-‘‘इनाम चाहिए ! जा भाग, जान बची तो लाखों पाये ! भेड़िये के मुँह में अपना सिर डालकर फिर तू उसे सही-सलामत निकाल ले सका, यह कोई मामूली इनाम नहीं है. बेटा ! टें टें मत कर ! भाग जा नहीं तो कचूमर निकाल दूँगा.’’

सारस डर के मारे थर-थर काँपने लगा. भेड़िये को अब वह क्या जवाब दे, कुछ सूझ ही नहीं रहा था. गरीब मन-ही-मन गुनगुना उठा-

रोते हों, फिर भी बदमाशों पर करना न यकीन.
मीठी बातों से मत होना छलियों के अधीन.
करना नहीं यकीन, खलों पर करना नहीं यकीन.

-------------------------------------------रचनाकार : नागार्जुन

4 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

खैर.....नेकी कर दरिया में डाल....
बहुत बढिया ..
शुभकामनाए

note pad said...

अपराजिता इस प्रयास के लिए बहुत बधाई !

sujata
sandoftheeye.blogspot.com

note pad said...

आपका परिचय भी इस ब्लॉग पर मिल जाता तो अच्छा लगता ।

आशीष कुमार 'अंशु' said...

बहूत खूब