Saturday, June 6, 2009

चांद एक दिन

हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला

सिलवा दो मा मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला

सन सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ

ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ

आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का

न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही को भाड़े का

बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`

कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने

जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ

एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ

कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा

बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा

घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है

नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है

अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज लिवायें

सी दे एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये!




----------------- रचनाकार: रामधारी सिंह "दिनकर"

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