खुली पाठशाला फूलों की
पुस्तक-कॉपी लिए हाथ में
फूल धूप की बस में आए
कुर्ते में जँचते गुलाब तो
टाई लटकाए पलाश हैं,
चंपा चुस्त पज़ामें में है -
हैट लगाए अमलताश है ।
सूरजमुखी मुखर है ज़्यादा
किंतु मोंगरा अभी मौन है,
चपल चमेली है स्लेक्स में
पहचानों तो कौन-कौन है ।
गेंदा नज़र नहीं आता है
जुही कहीं छिपाकर बैठी है,
जाने किसने छेड़ दिया है -
ग़ुलमोहर ऐंठी-ऐंठी है ।
सबके अपने अलग रंग हैं
सब हैं अपनी गंध लुटाए,
फूल धूप की बस में आए -
मुस्कानों के बैग सजाए ।
---------------रचनाकार: डा तारादत्त निर्विरोध
Saturday, July 12, 2008
खुली पाठशाला फूलों की
Posted by अपराजिता 'अलबेली' at 9:13 PM
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1 comments:
सुंदरतम रचना।
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