Saturday, July 12, 2008

अगर पेड़ भी चलते होते









अगर पेड़ भी चलते होते
कितने मज़े हमारे होते,
बाँध तने में उसके रस्सी
चाहे जहाँ कहीं ले जाते.

जहाँ कहीं भी धूप सताती
उसके नीचे झट सुस्ताते,
जहाँ कहीं वर्षा हो जाती
उसके नीचे हम छिप जाते.

लगती भूख यदि अचानक
तोड़ मधुर फल उसके खाते,
आती कीचड़ बाढ़ कहीं तो
झट उसके ऊपर चढ़ जाते.

अगर पेड़ भी चलते होते
कितने मज़े हमारे होते.

____________रचनाकार: दिविक रमेश

1 comments:

Anonymous said...

Adbhut Kavita. Wonderful poem. Rare in Hindi or children poetry