‘ क ‘ से काम कर ,
‘ ख ‘ से खा मत ,
‘ ग ‘ से गीत सुना ,
‘ घ ‘ से घर की बात न करना , ङ खाली.
सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली !
‘ च ‘ को सौंप चटाई ,
‘ छ ‘ ने छल छाया ,
‘ ज ‘ जंगल ने , ‘ झ ‘ का झण्डा फहराया ,
झगड़े ने ञ बीचोबीच दबा डाली ,
सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली !
‘ ट ‘ टूटे , ‘ ठ ‘ ठिटके ,
यूँ ‘ ड ‘ डरा गया ,
‘ ढ ‘ की ढपली हम ,
जो आया , बजा गया.
आगे कभी न आई ‘ ण ‘ पीछे वाली,
सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली !
---------------रचनाकार: रामकुमार कृषक
Sunday, July 27, 2008
ककहरा
Posted by अपराजिता 'अलबेली' at 4:12 AM
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