Sunday, July 27, 2008

ककहरा


‘ क ‘ से काम कर ,

‘ ख ‘ से खा मत ,

‘ ग ‘ से गीत सुना ,

‘ घ ‘ से घर की बात न करना , ङ खाली.

सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली !

‘ च ‘ को सौंप चटाई ,

‘ छ ‘ ने छल छाया ,

‘ ज ‘ जंगल ने , ‘ झ ‘ का झण्डा फहराया ,

झगड़े ने ञ बीचोबीच दबा डाली ,

सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली !

‘ ट ‘ टूटे , ‘ ठ ‘ ठिटके ,

यूँ ‘ ड ‘ डरा गया ,

‘ ढ ‘ की ढपली हम ,

जो आया , बजा गया.

आगे कभी न आई ‘ ण ‘ पीछे वाली,

सोचो हम तक कैसे पहुँचे खुशहाली !

---------------रचनाकार: रामकुमार कृषक

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