सूरज की चमक जब बहा दे पसीना,
हम सब कह उठते हैं गर्मी है आई।
छुट्टी की सुहानी सौगातें सब पाते हैं
इम्तहान के समय की हो गई बिदाई।
खेलों की दुनिया में यूँ हम खो जाते हैं
आपस में कभी नहीं होती लड़ाई।
बाहरी गर्मी का असर तन को तो होता है
पर मन की शीतलता को छू भी ना पाई।
कोई धूप से बचने के लिए ढूंढे जब छाया तो
हम सब कह उठते हैं गर्मी है आई।
Tuesday, April 27, 2010
गर्मी है आई
Posted by अपराजिता 'अलबेली' at 8:32 AM
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2 comments:
पहली बार इस ब्लॉग पर आया हूँ , बहुत अच्छा लगा ये ब्लॉग , हम बच्चों के बारे में ये कविता और अच्छी और प्यारी लगी , आपके ब्लॉग पर नियमित रूप से आना पडेगा
http://madhavrai.blogspot.com/
abhi to is garami ki bahut jarurat h thand se hath pair jam rahe h kah sakati hu garmi hai bhai
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